अरेराज का ऐतिहासिक सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर उत्तर बिहार का सबसे प्राचीनतम एवं प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो मोतिहारी से 28 किलोमीटर पर दक्षिण में गंडक नदी के किनारे स्थित है। सावन माह में तथा अन्य पर्वो के अवसर पर लाखो श्रद्धालु भक्तजन देश तथा समीपवर्ती नेपाल से यहां लोग आते है। श्रावण में यहां मेला भी लगता है। पर्यटकों का यह प्रिय स्थल बन चुका है।
पटना: बिहार के मोतिहारी शहर से 28 किमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित अरेराज में भगवान शिव का प्रसिद्व मंदिर है जो सोमेश्वर शिव मंदिर कहलाता है। बिहार में तीन शिव धाम प्रसिद्ध हैं। जिनमें अरेराज का स्थान सबसे उपर है। इसके बाद मुजफ्फरपुर के गरीब नाथ व बक्सर, ब्रह्पुर के शंकर मंदिर आते हैं। माना जाता है कि सोमेश्वरनाथ एक कामनापरक पंचमुखी शिवलिंग हैं। जिसपर सावन महीने में कमल का फूल व गंगा जल चढ़ाने से सारी मनोकामना पूरी होती हैं।
इस मंदिर का जिक्र स्कंद, पदम व बाराह पुराण में भी है। त्रेता युग में अपनी पत्नी सीता के साथ विवाह कर जनकपुर से अयोध्या लौटने के क्रम भगवान राम ने यहां पूजा की थी। इसी कारण, हर वर्ष जनकपुर में अगहन पंचमी को आयोजित होने वाले राम विवाह में अयोध्यवाशी भाग लेते हैं। और लौटते वक्त अरेराज मंदिर में जल जरूर चढ़ाते हैं। वर्ष 1983 में प्रसिद्ध साहित्यकार सच्चितानंद वात्स्यायन (अज्ञेय) व शंकर दयाल सिंह की खोजी टीम आई थी। उन्होंने भी इस तथ्य की पुष्टि की। रोटक व्रत कथा के मुताबिक, द्वापर में अज्ञातवास के दौरान राजा युधिष्ठिर ने अपने भाइयों व पत्नी द्रौपदी के साथ यहां पूजा की थी।
मोतिहारी में प्राचीन इतिहास व कला संस्कृति के प्रो. प्रदीपनाथ तिवारी बताते हैं, वर्ष 1816 ई. में भारत व नेपाल के बीच सुगौली में संधि हुई। पहले इस जगह का नाम संगौली था। और यहां से लेकर सिवान, हाजीपुर तक का क्षेत्र नेपाल में आता था।
इसका लिखित इतिहास करीब एक हजार वर्ष पुराना है। इसके मुताबिक वर्ष 1000 ई. में इधर आर्य आए। तब इसे अरण्यराज के नाम से जाना जाता था। यहां से नेपाल के तराई क्षेत्रों तक जंगल ही जंगल था। तिवारी बताते हैं कि मंदिर के संबंध में आधुनिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। साक्ष्य के लिए इतिहासकारों को भी पुराणों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्टेशन के पास यह एक पुराने किले के परिसर में सीताकुंड स्थित है। यह माना जाता है कि भगवान राम की पत्नी सीता ने त्रेतायुग में इस कुंड में स्नान किया था। इसके किनारे भगवान सूर्य, देवी दुर्गा, हनुमान सहित कई अन्य मंदिर भी बने हुए है।
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