12 ज्योतिर्लिंगों में से चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर है। यह मध्य प्रदेश के शिवपुरी में स्थित है। यहाँ दो ज्योतिर्लिंगों की पूजा की जाती है। ओंकारेश्वर और अमलेश्वर। शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता के 18 अध्याय में इसका वर्णन मिलता है। यही केवल एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित है।
ऐसा कहा जाता है कि ये तट ॐ के आकार का है। यहाँ प्रतिदिन अहिल्याबाई होल्कर की तरफ से मिट्टी से निर्मित 18 शिवलिंग तैयार करके नर्मदा नदी में विसर्जित किये गए हैं। मंदिर की इमारत पांच मंजिला है। यह ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है। लोगों का मानना है कि भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहाँ विश्राम करते हैं।
तभी रात्रि में यहाँ शिव भगवान जी की शयन आरती की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भक्तगणों के सारे संकट यहाँ दूर हो जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि आप चाहे सारे तीर्थ कर लें लेकिन ओंकारेश्वर के दर्शन करे बिना अधूरे हैं। इसीलिए भक्तगण दूर-दूर से यहाँ भारी संख्या में आते हैं।
Story 1
एक बार नारद जी भ्रमण करते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे। वहां पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का स्वागत किया और यह कहते हुए कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है, हर प्रकार की सम्पदा है, नारद जी के समक्ष पहुंचे।
नारद जी विंध्याचल की अभिमान युक्त बातें सुनकर, लम्बी सांस खींचकर चुपचाप खड़े रहे। तब विंध्याचल ने नारद जी से पूछा कि आपको मेरे पास कौनसी कमी दिखाई दी। जिसे देखकर आपने लम्बी सांस खींची। तब नारद जी ने कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ है किन्तु तुम सुमेरू पर्वत से ऊंचे नहीं हो ।
उस पर्वत का भाग देवताओं के लोकों तक पहुंचा हुआ है और तुम्हारे शिखर का भाग वहां तक कभी नहीं पहुँच पायेगा। ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए। लेकिन वहां खड़े विंध्याचल को बहुत दुःख हुआ और मन ही मन शोक करने लगा।
तभी उसने शिव भगवान की आराधना करने का निश्चय किया। जहाँ पर साक्षात् ओमकार विद्यमान है, वहां पर उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया और लगातार प्रसन्न मन से 6 महीने तक पूजा की। इस प्रकार शिव भगवान जी अतिप्रसन्न हुए और वहां प्रकट हुए। उन्होंने विंध्य से कहा कि मैं तमसे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो।
तब विंध्य ने कहा कि आप सचमुच मुझ से प्रसन्न हैं तो मुझे बुद्धि प्रदान करें जो अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हो। तब शिव जी ने उनसे कहा कि मैं तुम्हे वर प्रदान करता हूँ कि तुम जिस प्रकार का कार्य करना चाहते हो वह सिद्ध हो।
वर देने के पश्चात वहां कुछ देवता और ऋषि भी आ गए। उन सभी ने भगवान शिव जी की पूजा की और प्रार्थना की कि हे प्रभु ! आप सदा के लिए यहाँ विराजमान हो जाईए।
शिव भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए। लोक कल्याण करने वाले भगवान शिव ने उन लोगों की बात मान ली और वह ओमकार लिंग दो लिंगों में विभक्त हो गया। जो पार्थिव लिंग विंध्य के द्वारा बनाया गया था वह परमेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है और जो भगवान शिव जहाँ स्थापित हुए वह लिंग ओमकार लिंग कहलाता है। परमेश्वर लिंग को अमलेश्वर लिंग भी कहा जाता है और तब से ही ये दोनों शिवलिंग जगत में प्रसिद्ध हुए।
Story 2
एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। राजा मान्धाता ने इस पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन किया था। तपस्या से शिव भगवान जी अत्यंत प्रसन्न हुए और प्रकट हुए। तब राजा मान्धाता ने शिव भगवान को सदा के लिए यहीं विराजमान होने के लिए कहा।
तब से शिव जी वहां विराजमान है। इसीलिए इस नगरी को ओंकार – मान्धाता भी कहते हैं। इस क्षेत्र में 68 तीर्थ स्थल हैं और ऐसा कहा जाता है कि यहाँ 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं। यहाँ नर्मदा जी में स्नान करने का विशेष महत्त्व है। नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही आपके सारे पाप दूर हो जाते हैं।
Story 3
एक कथा ये भी है – एक बार देवों और दानवों के बीच युद्ध हुआ। दानवों ने देवताओं को पराजय कर दिया। देवता इस बात को सह न सके और हताश होकर शिव भगवान से विनती की और पूजा-अर्चना की। उनकी भक्ति को देखकर शिव भगवान जी अत्यंत प्रसन्न हुए और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हुए और दानवों को पराजय किया।
इसी मंदिर में कुबेर ने भगवान शिव जी का शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी। वे शिव भक्त थे। उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उन्हें धनपति बनाया था। भगवान शिव जी ने अपने बालों से काबेरी नदी उत्पन्न की थी, जिससे कुबेर ने स्नान किया था। यही काबेरी नदी ओमकार पर्वत की परिक्रमा करते हुए नर्मदा नदी में मिलती हैं। इसे ही नर्मदा-काबेरी का संगम कहते हैं।
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