माण्डू या माण्डवगढ़, धार जिले के माण्डव क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह भारत के पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। यह धार शहर से 35 किमी दूर स्थित है। यह 11 वीं शताब्दी में, माण्डू तारागंगा या तरंगा राज्य का उपभाग था। यहाँ परमारों के काल मे इसे प्रसिद्धि प्राप्त हुई और फिर १३ वीं शताब्दी में, यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अंतर्गत आ गया, जहाँ से इसका स्वर्णकाल प्रारम्भ हो गया। विन्ध्याचल पर्वत शृंखला में स्थित होने के कारण इसका सुरक्षा कि दृस्टि से बहुत अधिक महत्व था।
आज यह एक पर्यटक स्थल के रूप मे प्रशिद्ध है। जहाँ हजारों कि संख्या में सैलानी यहाँ के दर्शनीय स्थलों जैसे जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और वास्तुकला के उत्कृष्टतम उदाहरण आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद को देखने आते है। इसकी इन्दौर शहर से दुरी १०० किमी है।
इतिहास
पुर्व तालकपुर (धार जिले में ही) राज्य से मिले एक शिलालेख के अनुसार, एक व्यापारी चंद्रसिंह ने "मंडपा दुर्गा" में स्थित पार्सवनाथ मंदिर में एक मूर्ति स्थापित की। "माण्डू" शब्द मंडपा दुर्गा का ही समय के साथ बदला हुआ नाम है। ६१२ विक्रम संवत के एक शिलालेख इंगित करती है कि 6वीं सदी में मांडू एक समृद्ध शहर हुआ करता था।
10वीं और 11वीं शताब्दी में माण्डू को परमारों के शासनकाल् में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 633 मीटर (2079 फीट) की ऊंचाई पर स्थित मांडू शहर, विंध्य पर्वत में 13 किमी (8.1 मील) पर फैला हुआ है। उत्तर में मालवा का पठार और दक्षिण में नर्मदा नदी की घाटी, परमारों के इस किला-राजधानी को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता थी। जयवर्मन द्वितीय से शुरू होने वाले परमार राजाओं के अभिलेखों में माण्डू ("मंडपा-दुर्गा" के रूप में) को शाही निवास के रूप में उल्लेख किया गया है। यह संभव है कि जयवर्मन या उसके पुर्वज जैतूगि ने पड़ोसी राज्यों के लगातार हमलों के कारण, पारंपरिक परमार राजधानी धार से माण्डू स्थानांतरित कर दिया होगा। बलबान, दिल्ली के सुल्तान नसीर-उद-दीन के जनरल, इस समय परमार क्षेत्र के उत्तरी सीमा तक पहुंच गए थे। इसी समय, परमारों को देवगिरि के यादव राजा कृष्ण और गुजरात के वघेला राजा विशालदेव से हमलों का सामना करना पड़ा। धार, जो मैदानी इलाकों में स्थित है, की तुलना में माण्डू के पहाड़ी क्षेत्र में स्थिति एक बेहतर रक्षात्मक अवस्थिति प्रदान करती होगी।
इन्दौर से लगभग ९0 किमी दूर है। माण्डू विन्ध्य की पहाडियों में 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मूलत: मालवा के परमार राजाओं की राजधानी रहा था। तेरहवीं शती में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानि "खुशियों का शहर" रख दिया था। वास्तव में यह नाम इस जगह को सार्थक करता है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं।ख़िलजी शासकों द्वारा बनाए गए इस नगर में जहाज और हिंडोला महल खास हैं। यहाँ के महलों की स्थापत्य कला देखने लायक है। मांडू इंदौर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह धार से भी जुड़ा हुआ है।
- दरवाजे
मांडू में दाखिल होने के लिए 12 दरवाजे हैं। मुख्य रास्ता दिल्ली दरवाजा कहलाता है। दूसरे दरवाजे रामगोपाल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा और तारापुर दरवाजा कहलाते हैं।
- जहाज महल
जहाजनुमा आकार में इस महल को दो मानवनिर्मित तालाबों के बीच बनाया गया था।
- हिंडोला महल
टेड़ी दीवारों के कारण इस महल को हिंडोला महल कहा जाता है।
- होशंग शाह का मकबरा (जामा मस्जिद)
होशंग शाह गौरी (1406-1435) मांडू का प्रथम इस्लामिक सुल्तान था। उसके पिता का नाम दिलावर खान गोरी था, जिसको फिरोजशाह तुगलक ने मांडू का राज्यपाल नियुक्त किया था। मकबरे का निर्माण कार्य होशंग शाह गोरी ने शुरू किया था, जो महमूद खिलजी (१४३६-१४६९) ने 1440 ई में पूर्ण किया।
- रानी रूपमती महल
कहां जाता है रानी रूपमती हिन्दु गायिका थी रानी रूपमती पर मालवा के अफगान सुल्तान बाज बहादुर खान [1556-1562] ई.आकर्षित हो गए और रूपमती से विवाह कर लिया रानी रूपमती नर्मदा दर्शन के उपरांत भोजन ग्रहण करती थी इसलिए उन्होंने रानी रूपमती महल का निर्माण करवाया था।
इनके अलावा नहर झरोखा, बाज बहादुर महल, और नीलकंठ महल भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। शुरुआत में अशर्फी महल होशंग शाह द्वारा बनवाया गया था परन्तु तत्पश्चात इसे मेहमूद खिलजी ने इसका पुनः निर्माण करवाया
हर वर्ष मान्डु में प्रशासन द्वारा मान्डु उत्सव मनाया जाता है।
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Nikhil pandey
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